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Nirjala Ekadashi Vrat Katha: आज है निर्जला एकादशी, इस व्रत कथा के बिना अधूरा रह जाता है निर्जला एकादशी का व्रत, जानिए संपूर्ण व्रत कथा

Nirjala Ekadashi: आज 6 जून है। निर्जला एकादशी व्रत आज रखा गया है। यह व्रत हमारे जीवन में बड़ा महत्व रखता है। यह व्रत हमने जाने अनजाने में जो पाप किए उन्हें धोने के लिए होता है। कहा जाता है की यह व्रत रखने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। धार्मिक मान्यता के अनुसार यह व्रत ज्येष्ठ शुक्ल एकादशी के दिन रखा जाता है।

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Nirjala Ekadashi Vrat Katha: आज 6 जून है। निर्जला एकादशी व्रत आज रखा गया है। यह व्रत हमारे जीवन में बड़ा महत्व रखता है। यह व्रत हमने जाने अनजाने में जो पाप किए उन्हें धोने के लिए होता है। कहा जाता है की यह व्रत रखने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। धार्मिक मान्यता के अनुसार यह व्रत ज्येष्ठ शुक्ल एकादशी के दिन रखा जाता है।

यह व्रत बड़ा कठिन होता है। यह वैसा व्रत नहीं की खाना नहीं खाना फल खा लो। यहाँ तक की इस व्रत में तो पानी तक नहीं पिया जाता। यह निर्जला उपवास होता है। इस व्रत में भगवान विष्णु की पूजा होती है। मान्यता है की इस व्रत को रखने वालों को जीवन मरण से मुक्ति मिल जाती है और वो सीधे विष्णु लोक चले जाते हैं। ध्यान देने वाली बात है की यह व्रत 36 घंटे का होता है जो ज्येष्ठ शुक्ल दशमी तिथि की शाम से द्वादशी की सुबह तक रखा जाता है।

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निर्जला एकादशी व्रत कथा

भीमसेन व्यास मुनि के पास गए और कहा मेरी माता कुंती और मेरे भाई युधिष्ठिर, अर्जुन, नकुल, सहदेव और द्रौपदी सभी एकादशी का व्रत करते हैं, इन लोगों ने मुझे भी अन्न न खाने की शिक्षा दी है, कहते हैं खाओगे तो तुम नरक में जाओगे। अब मुनिवर आप ही बताइए मैं क्या करूं। हर 15 दिन में एक एकादशी आती है और हमारे घर में लड़ाई-झगड़े होते हैं। भीम कहते हैं मेरे अंदर अग्नि रहती है, अगर मैं भोग नहीं लगाऊंगा तो वह चर्बी को चूस लेगी।

अपने शरीर की देखभाल करना सबसे बड़ा मानवीय कर्तव्य है, इसलिए बताइए मैं क्या करूं। कोई ऐसा उपाय बताइए, जिससे सर्प भी मर जाए और लाठी तक न टूटे। उन्होंने कहा कि ऐसा व्रत होना चाहिए, जो वर्ष में एक बार किया जाए और जिससे मस्तिष्क में रोग नष्ट हो जाएं। उस एक व्रत से ही 24 एकादशियों का फल मिल जाता है। व्यास जी ने कहा- ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की एकादशी का नाम निर्जला है। इस व्रत में भगवान ठाकुर का चरण जल वर्जित नहीं है, क्योंकि इससे कालांतर में मृत्यु दूर हो जाती है।

जो लोग भक्तिपूर्वक इस निर्जला एकादशी का व्रत करते हैं, उन्हें 24 एकादशी का फल मिलता है और वे स्वर्ग जाते हैं। व्रत में पितरों के लिए पंखे, छाते, जूती, वस्त्र, सोम, चांदी, मिट्टी के बर्तन, फल ​​दान किए जाते है। पीने के लिए ताजा पानी लें। ओम नमो भगवते वासुदेवाय नमः का जाप करें। यही श्रीमद्भागवत पुराण का सार है। यदि आप फलाहारी हैं, तो ध्रुव मास के तप में आपको वही फल मिलेगा। यदि आप इस दिन निराहार रह सकें, तो आपको छठे मास के तप के समान ही फल मिलेगा।

इस व्रत में आस्था रखें और किसी नास्तिक की संगति न करें, अपने नेत्रों में प्रेम का रस भरें। सभी को इस प्रकार नमस्कार करें, मानो वे वासुदेव के स्वरूप हैं। किसी के प्रति हिंसा न करें, अपराध करने वाले के अपराध को क्षमा कर दें। क्रोध न करें, सत्य बोलें और मन में भगवान की छवि का ध्यान करें। अपने मुख से बारह अक्षरों वाले मंत्र का ध्यान करें। इस दिन भजन गाना चाहिए तथा रात्रि में जागरण करना चाहिए, जिसमें रामलीला तथा कृष्ण लीला का कीर्तन करना चाहिए।

द्वादशी को सबसे पहले ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिए, उन्हें दक्षिणा देनी चाहिए, उनकी परिक्रमा करनी चाहिए तथा वर मांगना चाहिए। जो इस प्रकार भक्तिपूर्वक व्रत करता है, उसका कल्याण होता है। जो सभी जीवों को वासुदेव की छवि के रूप में देखता है, उसे मेरी कलम कोटि बार नमस्कार करने योग्य मानती है। निर्जला एकादशी का श्रवण करने से मनुष्य की आंखें बहुत खुल जाती हैं। पर्दा हटाकर भगवान चर्च में मन में प्रकट हुए। इस एकादशी को भीमसैनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है।

 

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