Haryana सरकार को झटका, अरावली जंगल सफारी पर सुप्रीम कोर्ट ने लगाई रोक
मुख्य याचिकाकर्ता सेवानिवृत्त वन संरक्षक डॉ. आरपी बलवान ने कहा कि यह परियोजना अरावली जैसे संवेदनशील क्षेत्र में राजस्व को अधिकतम करने और वाणिज्यिक गतिविधियों को बढ़ाने के मुख्य उद्देश्य से तैयार की गई है, जिसमें गहरी खामियां हैं। उन्होंने ज़ोर दिया कि यह परियोजना अरावली क्षेत्र की पारिस्थितिकी और जल विज्ञान को कमजोर करेगी।

Haryana सरकार की महत्वाकांक्षी 10,000 एकड़ की अरावली जंगल सफारी परियोजना पर सर्वोच्च न्यायालय ने तत्काल रोक लगा दी है। परियोजना के खिलाफ भारत के विभिन्न हिस्सों के पांच सेवानिवृत्त भारतीय वन सेवा (IFS) अधिकारियों और पर्यावरण समूह ‘पीपल फॉर अरावलीज’ ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी, जिस पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने यह महत्वपूर्ण निर्देश दिया।
भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) और न्यायमूर्ति के विनोद चंद्रन की पीठ ने हरियाणा सरकार और केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय को इस संबंध में नोटिस जारी किया है। कोर्ट ने स्पष्ट निर्देश दिया है कि अगली सुनवाई तक हरियाणा सरकार अरावली जू सफारी परियोजना पर किसी भी तरह का कार्य नहीं करेगी। मामले की अगली सुनवाई 15 अक्तूबर 2025 को होनी है।
याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया है कि अरावली पर्वतमाला दिल्ली-एनसीआर को मरुस्थलीकरण से बचाने वाली एकमात्र प्राकृतिक दीवार है और यह क्षेत्र भूजल संरक्षण, प्रदूषण अवशोषण, जलवायु नियंत्रक और वन्यजीव आवास के रूप में कार्य करता है। परियोजना को चुनौती देने वाले सेवानिवृत्त अधिकारियों का कहना है कि यह सफारी पार्क इस नाजुक पारिस्थितिकी तंत्र के लिए ‘मौत की घंटी’ बजाएगा।
मुख्य याचिकाकर्ता, सेवानिवृत्त वन संरक्षक डॉ. आरपी बलवान ने कहा कि यह परियोजना अरावली जैसे संवेदनशील क्षेत्र में राजस्व को अधिकतम करने और वाणिज्यिक गतिविधियों को बढ़ाने के मुख्य उद्देश्य से तैयार की गई है, जिसमें गहरी खामियां हैं। उन्होंने ज़ोर दिया कि यह परियोजना अरावली क्षेत्र की पारिस्थितिकी और जल विज्ञान को कमजोर करेगी।
सेवानिवृत्त अधिकारियों ने सफारी की प्रकृति पर भी सवाल उठाए हैं। उत्तर प्रदेश के पूर्व प्रधान मुख्य वन संरक्षक उमाशंकर सिंह ने स्पष्ट किया कि “सफारी पार्क को वन्य जीव अभयारण्य समझ लिया जाता है, लेकिन यह वास्तव में एक चिड़ियाघर है, जहाँ जानवरों को बड़े बाड़ों में रखा जाता है।”
केरल की पूर्व प्रधान मुख्य वन संरक्षक प्रकृति श्रीवास्तव ने आपत्ति जताई कि हरियाणा का अरावली कभी भी चीतों या अन्य विदेशी प्रजातियों का घर नहीं रहा है, जिन्हें इस प्रस्तावित चिड़ियाघर सफारी में लाने की योजना है।
वहीं महाराष्ट्र के सेवानिवृत्त प्रधान वन संरक्षक डॉ. अरविंद कुमार झा ने चिंता व्यक्त की कि सफारी में लगाए जाने वाले बाड़ अरावली के वन्यजीवों की मुक्त आवाजाही को बाधित करेंगे, जो इस क्षेत्र की जैव विविधता के लिए घातक है।
सेवानिवृत्त अधिकारियों के साथ पर्यावरण समूह पीपल फॉर अरावलीज ने यह याचिका टीएन गोदावर्मन तिरुमुलपद बनाम भारत संघ एवं अन्य नामक सुप्रीम कोर्ट में चल रहे एक बड़े वन संबंधी मामले के तहत दायर की है।