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SDM ने सड़क पड़े घायल बाइक सवार की बचाई जान, मरीज को अपनी गाड़ी से पहुंचाया ट्रॉमा सेंटर  

 

Haryana:  घायल को ईलाज के लिए अपनी गाड़ी से ट्रॉमा सेंटर लेकर पहुंचे एसडीएम
एसडीएम बोले- घायलों की मदद करना हमारा सभी का मानवीय  कर्तव्य
बहादुरगढ़, 25 मार्च।
एसडीएम नसीब कुमार ने मंगलवार सुबह मानवता की एक ऐसी मिसाल पेश की, जो हर किसी के लिए प्रेरणा का स्त्रोत बन गई। जिला मुख्यालय पर मीटिंग के जाते समय  रोहतक दिल्ली राष्ट्रीय राजमार्ग पर आसौदा के निकट सड़क पर  घायल हुए बाइक सवार को देखते ही उन्होंने तुरंत अपनी गाड़ी रुकवाई और उसे अपनी सरकारी गाड़ी से ट्रॉमा सेंटर नागरिक अस्पताल बहादुरगढ़ पहुँचाया । ट्रॉमा सेंटर में तुरंत घायल का इलाज शुरू कर दिया। डॉक्टरों ने कहा कि अगर समय पर अस्पताल न पहुंचाया जाता, तो बाइक सवार की जान को गंभीर खतरा हो सकता था।


जानकारी के अनुसार सड़क हादसे में घायल नरेश कुमार दहकौरा गाँव का निवासी है और दिल्ली में नौकरी करता है। संभवतः उसकी बाइक का संतुलन बिगड़ गया और वह अनियंत्रित होकर सड़क पर गिर गया। हेलमेट पहनने की वजह से उसके सिर में चोट नहीं आई थी। पैर और शरीर पर चोट आई थी। हादसे के बाद नरेश सड़क पर तड़प रहा था, तभी वहाँ से गुजर रहे एसडीएम नसीब कुमार की नजर उस पर पड़ी।


एसडीएम ने तुरंत अपने स्टाफ के साथ मिलकर घायल नरेश को अपनी सरकारी गाड़ी में बिठाकर बहादुरगढ़ के नागरिक अस्पताल पहुँचाया। फिर मीटिंग के लिए गए। डॉक्टर देवेंद्र मेघा ने बताया कि अस्पताल में नरेश को तुरंत प्राथमिक उपचार दिया गया।


इस नेक कार्य के बाद एसडीएम नसीब कुमार ने कहा कि सड़क हादसों में घायल लोगों की मदद करना हमारा नैतिक कर्तव्य है।  एसडीएम ने किया कहा कि मैं सभी से अपील करता हूँ कि सड़क हादसों में घायलों की मदद के लिए आगे आएँ। एक छोटा सा कदम किसी की जिंदगी बचा सकता है।


एसडीएम ने सड़क हादसों में मदद करने की हिचक को दूर करने के लिए सरकार की पहल का भी जिक्र किया। उन्होंने बताया कि सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय द्वारा 'गुड सेमेरिटन योजना' चलाई जा रही है, जो हादसे में घायल लोगों की 'गोल्डन ऑवर' में मदद करने वालों को प्रोत्साहित करती है। इस योजना के तहत किसी घातक दुर्घटना (मोटर वाहन से जुड़ी) के पीड़ितों को तत्काल सहायता देकर अस्पताल या ट्रामा केयर सेंटर पहुंचने वाले व्यक्ति को पुरस्कार दिया जाता है। कई बार लोग कानूनी पचड़े के डर से मदद करने से कतराते हैं, लेकिन इस योजना के तहत मदद करने वालों को किसी भी कानूनी परेशानी का सामना नहीं करना पड़ता।