Haryana News: हरियाणा बिजली उत्पादन में बनेगा आत्मनिर्भर, परमाणु संयंत्र की पहली यूनिट जल्द होगी शुरू

हरियाणा के फतेहाबाद में 2009 में शुरू हुए उत्तर भारत के पहले परमाणु ऊर्जा संयंत्र परियोजना के काम ने एक बार फिर गति पकड़ ली है। तकनीकी दिक्कतों के चलते तय समय में निर्माण कार्य पूरा न होने से परियोजना में कई साल की देरी हुई, लेकिन अब काम में तेजी आने से परियोजना के जल्द पूरा होने की उम्मीद है। फतेहाबाद के गोरखपुर में परमाणु ऊर्जा संयंत्र लगाने में सबसे बड़ी बाधा इसकी प्रस्तावित आवासीय कॉलोनी में काले हिरण थे।
गांव बड़ोपल में साइट पर काले हिरण मिलने के बाद वन्यजीव संस्थान देहरादून और हरियाणा वन्यजीव विभाग ने आपत्ति जताते हुए इस क्षेत्र को परियोजना के लिए अनुपयुक्त करार देते हुए इसे किसी अन्य स्थान पर शिफ्ट करने की सिफारिश की थी।
इसके बाद प्लांट की आवासीय कॉलोनी के लिए सेक्टर-6 एचएसवीपी अग्रोहा में 194 एकड़ वैकल्पिक भूमि आवंटित की गई। वहीं, कोरोना काल भी परियोजना में देरी का बड़ा कारण रहा है। अब सभी तरह की बाधाएं लगभग पार हो चुकी हैं और इसके निर्माण में तेजी लाई जा रही है।
चारों चरण चरणबद्ध तरीके से पूरे किए जाएंगे
इस परियोजना को चार इकाइयों में बांटा गया है। 2800 मेगावाट की इस परियोजना की पहली 700 मेगावाट इकाई का व्यावसायिक संचालन जुलाई 2028 में शुरू होने की उम्मीद है। इसके बाद दूसरी इकाई दिसंबर 2028, तीसरी इकाई जुलाई 2029 और चौथी इकाई जुलाई 2030 तक चालू करने की योजना है।
पूरी परियोजना के पूरी तरह चालू हो जाने के बाद कुल उत्पादित बिजली का 50 प्रतिशत हिस्सा हरियाणा को मिलेगा, जो राज्य की ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने में अहम भूमिका निभाएगा। यदि यह पर्यावरणीय और तकनीकी समस्या आड़े नहीं आती तो इस परियोजना की पहली इकाई जुलाई 2018 में, दूसरी दिसंबर 2018 में, तीसरी जुलाई 2019 में और चौथी इकाई जुलाई 2020 में शुरू हो जाती।
चुनौतियों को पार कर परियोजना आगे बढ़ी
परमाणु ऊर्जा संयंत्र के निर्माण के लिए हरियाणा विद्युत उत्पादन निगम (एचपीजीसीएल) को नोडल एजेंसी नियुक्त किया गया था। परियोजना के लिए गोरखपुर में 1503 एकड़ भूमि अधिग्रहित की गई थी।
इसे सुचारू रूप से क्रियान्वित करने के लिए 16 जुलाई 2012 को एक राज्य स्तरीय अंतर-विभागीय समन्वय समिति का गठन किया गया था। यह समिति मुख्य सचिव की अध्यक्षता में काम करती है और परियोजना से जुड़े मुद्दों को सुलझाने में अहम भूमिका निभा रही है।
अब तक आईडीसीसी की करीब 10 बैठकें हो चुकी हैं, जिनमें परियोजना से जुड़ी कई समस्याओं का समाधान किया गया है। हालांकि परियोजना के सामने कई पर्यावरणीय और तकनीकी चुनौतियां थीं, लेकिन अब इसे जल्दी पूरा करने के लिए कदम उठाए जा रहे हैं।
परियोजना में देरी के मुख्य कारणों में पर्यावरणीय चिंताएं और हस्तांतरण की प्रक्रिया शामिल है। इसके बावजूद अब परियोजना की प्रगति को लेकर उम्मीदें काफी बढ़ गई हैं।